दुनिया में इतनी गलतफहमी ही गलतफहमी आखिर क्यों ; ओशो
क्योंकि लोग बेहोश हैं, क्योंकि लोग गहरी नींद में हैं, क्योंकि लोग रोबोट की तरह हैं। संवाद असंभव है; तुम कुछ कहते हो, कुछ और ही समझा जायेगा।
संवाद का एकमात्र ढंग है प्रेम में, मौन में। लेकिन कोई नहीं जानता कि प्रेम में कैसे हों, और किसी को पता नहीं कि मौन कैसे हों! जबकि सिर्फ प्रेम और मौन में संवाद संभव है। लेकिन हम बौद्धिकता से भरे हैं, इसलिए संवाद असंभव है। दुनिया में इतनी गलतफहमी के लिए भाषा भी एक कारण है।
मौन से संवाद स्थापित करना प्रारंभ करो। अपने मित्र का हाथ अपने हाथ में ले लो, मौन बैठ जाओ। चाँद को देखो, चाँद को महसूस करो, और दोनों मौन में इसे महसूस करो। और तुम देखोगे, वहां संवाद घटता है -- सिर्फ संवाद ही नहीं बल्कि सम्प्रेषण घटता है। और तुम्हारे हृदय एक ही लय में धड़कने लगते हैं, तुम अपने भीतर एक ही आकाश, एक ही आनंद महसूस करने लगते हो। और तब तुमदोनों एक-दूसरे के होने पर ओवरलैप करने लगते हो। वहां संवाद है! तुमने बिना कुछ कहे कह दिया, और वहां किसी तरह का गलत समझना नहीं होगा।
अगर तुम गलतफहमी को टालना चाहते हो तो तुम्हें अनिवार्य रूप से मौन सीखना होगा। अगर तुम मौन सीखते हो तो पहली चीज यह होगी कि तुम कभी किसी को गलत नहीं समझोगे। और यह बहुत बड़ा आनंद है -- किसी को भी गलत नहीं समझना! तब तुम अच्छे श्रोता हो गए, तुम सम्यक श्रवण जानोगे। और हर चीज तुम्हारे लिए स्पष्ट और साफ-सुथरी होगी।
यह स्पष्टता तर्क से नहीं आएगी, बौद्धिकता से नहीं आएगी, विश्लेषण से नहीं आएगी -- यह स्पष्टता मौन के द्वारा आती है। अगर तुम्हारे मौन में किसी के शब्द उतरते हैं तो तुम गलत अर्थ नहीं लगाओगे क्योंकि वहां कोई दखल देने वाला नहीं है; या तो तुम समझते हो या तुम नहीं समझते, लेकिन वहां गलत समझने का कोई कारण नहीं है।
मौन सीखो! और कम से कम अपने मित्र के साथ, अपने प्रेमी के साथ, अपने परिवार के साथ, या यहां पर, कभी-कभी मौन में बैठो। गपशप मत करते रहो, बातचीत मत करते रहो। बातचीत बंद करो, और सिर्फ बाहर ही नहीं, भीतरी बातचीत भी बंद करो। अंतराल में बने रहो। बस बैठ जाओ, कुछ नहीं करो, सिर्फ एक-दूसरे के लिए उपस्थित रहो। और जल्दी ही तुम संवाद का एक नया ढंग पा लोगे, और वही सही ढंग है!
❤ओशो❤
दिस वेरी बॉडी दि बुद्धा
दिस वेरी बॉडी दि बुद्धा
[फेसबुक से आमुक ने अल्फ़ा न्यूज इंडिया के पाठकों हेतु प्रेषित की ]
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