प्रशासन की पब्लिसिटी अब पीआरओ की मनमर्जी के हवाले,लाखों रूपये सैलरी के नाम गर्क, कोई नहीं दीखता फ़र्क़

   प्रशासन की पब्लिसिटी अब पीआरओ की मनमर्जी के हवाले,लाखों रूपये सैलरी के नाम गर्क, कोई नहीं दीखता फ़र्क़   

चंडीगढ़ : 28  अप्रैल : अल्फ़ा इंडिया /स्थानीय संवाददाता ;------स्थानीय प्रशासन के लोक सम्पर्क विभाग में सफेद हठी साबित हो रहीं तीनों महिला पीआरओ और दोनों एपीआरओज प्रशासन  सिरदर्दी बनती  जा रही  हैं ! हर माह प्रशासन के राजस्व  से उनको मोटेमोटे वेतनमान अदा किये जाते हैं और बदले में कारगुजारी पत्रकार और पब्लिक के सामने सिफर है ! चंद अफसरों के मुंह लगीं और चेहती ये महिला अफसर अपनी नियुक्ति सहित योग्यताओं को भी लेकर संदेहों के घेरे में हैं !  यूटी प्रशासन का डायरेक्टर पब्लिक रिलेशन डिपार्टमेंट के बेलगाम और निकम्मेपन से प्रशासक वीपी सिंह बदनौर के साथ प्रशासन की छवि को लगातार बट्टा लग रहा है। हैरान करने वाली बात यह है कि इस डिपार्टमेंट में काम करने वाले अपने को कर्मचारी या अधिकारी नहीं, बल्कि अपने आपको सरकारी दामाद समझकर काम कर रहे हैं।  इस डिपार्टमेंट पर प्रशासन के किसी भी आलाधिकारी की कोई पकड़ नहीं है। यही कारण है कि बायमेट्रिक एटेंडेंस मशीन होते हुए भी अधिकारी बायमेट्रिक एटेंडेंस नहीं लगाते। ताकि इनके कार्यालय आने-जाने का कोई पुख्ता रिकॉर्ड ही न हों। फ़िलहाल यह भी मांग उठने लगी है कि इसकी पूरी जांच हो कि ठेके पर लगाए गए कर्मचारी या अधिकारी किन-किन अधिकारियों के रिलेटिव हैं और किसने इन्हें लगवाए। क्या जिन पदों पर ये अधिकारी लगाए गए हैं। इसके लिए उनके पास कोई डिग्री या कार्य अनुभव है। ध्यान रहे कि किसी भी देश, राज्य या यूटी का डीपीआर सरकार या प्रशासन का चेहरा और प्रवक्ता होते हैं।      
चंडीगढ़ लोकसंपर्क विभाग में पसरी अंधेरगर्दी ;----!
बेहद करीबी सूत्रों की मानें तो डायरेक्टर पब्लिक रिलेशन ऑफिस खासकर मीडिया विंग में पिछले कुछ सालों से जबरदस्त अंधेरगर्दी मची हुई है। बताना जरुरी है कि डीपीआर किसी भी राज्य या यूटी सरकार का फेस यानि चेहरा होता है। साथ ही सरकार का मुख्य प्रवक्ता भी। डीपीआर का इससे भी बड़ा काम है प्रिंट मीडिया, एल्कट्रॉनिक या अन्य मीडिया के माध्यम से सरकारी पॉलिसी, चलित और भावी कल्याणकारी योजना परियोजनाओं सहित  विकास कार्यों की जानकारी को मुस्तैदी से प्रेस या जनता तक पहुँचाना। इसके बाद भी इस डिपार्टमेंट की ओर से प्रशासन या सरकार की छवि सुधारने या जनता तक पुख्ता सूचना भेजने के लिए प्रेसनोट जारी नहीं किया जाता। बल्कि अन्य डिपार्मेंट से यदा-कदा आने वाले प्रेसनोटों को सिर्फ पत्रकारों के लिए फॉरवर्ड किया जाता है। सीधे सीधे प्रशासन का  पीआरओ विंग  सफेद हठी से ज्यादा कुछ भी नहीं है !  आश्चर्यजनक है कि इन सब की जानकारी होते हुए भी यूटी चंडीगढ़ के आला अधिकारी डीपीआर को मजबूत बनाने की बजाय इस डिपार्टमेंट को आरामगाह बनाकर छोड़ दिया है। इस विभाग में आला अफसरों के रिलेटिव को डिग्री या कार्यानुभव न होने के बावजूद एडजस्ट कर प्रशासक बदनौर के आँखों में धूल झोंकने का काम किया गया है। ऐसा सूत्रों ने आशंका जताई है।  
नियुक्तियों पर सवाल खड़ा किया!
सूत्रों ने प्रशासक वीपी सिंह बदनौर से जांच की मांग करते हुए महिला पीआरओ श्वाति मुंजाल, एपीआरओ श्वाति कामरा और आरजू शर्मा की नियुक्तियों पर सवाल खड़ा किया है। सूत्रों ने आशंका जताई है ये तीनों ही ठेके की महिला अधिकारी किसी न किसी ऑफिसर की रिलेटिव हो सकती हैं। उन्होंने कहा कि इन तीनो ही महिला अधिकारियों के पास उक्त जिम्मेदार पद के लिए जरुरी डिग्री या कार्यानुभव है भी या नहीं यह जांच का विषय है। उन्होंने जोर देकर कहा कि जांच का विषय यह भी कि आँख-कान मूंदकर इस जिम्मेदार पद पर इन्हें किसने और क्यों लगाया है। बताया जाता है कि पीआरओ श्वाति मुंजाल की सैलरी करीब 47 हजार प्रतिमाह, एपीआरओ आरजू शर्मा की प्रतिमाह सैलरी लगभग 31 हजार, एपीआरओ श्वाति कामरा की भी सैलरी करीब 31 हजार प्रतिमाह है। इन्हें नियमित रूप से सैलरी तो मिल रही है। पर काम धेले भर का नहीं। इसलिए इसकी जांच अब जरुरी है। 
महिला अधिकारियों के रौब :--
सूत्रों ने दुखी मन से कहा इन महिला अधिकारियों के रौब भी ऐसे, जैसे ये शहर के लिए भाग्यविधाता बनकर आईं हों। ये किसी भी बात पर नियमित कर्मचारियों को फटकार भी लगा देती हैं। डीपीआर के ये महिला अधिकारी पत्रकारों से भी सीधे मुंह बात नहीं करती हैं। यदि कोई पत्रकार शाम पांच बजे के बाद इन महिला अधिकारियों से सूचना पाने के लिए संपर्क भी करे तो उनपर ये बरस पड़तीं हैं। 
पत्रकारों की ज्यूरी पर डालती जिम्मेवारी ;---पीआरओ स्वाति  मुंजाल हर प्रकार की पत्रकारों से जुडी बात के लिए पत्रकारों की नियुक्त की गई ज्यूरी पर सारी जिम्मेवारी डालती है और खुद ही ज्यूरी के कार्यों और गठन के लिए गैर कानूनी आधारों का खुलासा करने का बीड़ा उठा लेती हैं! 
उनके मुताबिक मान्यता प्राप्ति के लिए आवेदन पत्र सीधे ज्यूरी के पास जाते हैं ! जोकि कानूनन गलत है ! ये सरकारी नीतियों की सीधे सीधे अवहेलना  नहीं तो क्या है ! पत्रकारों का एक बड़ा वर्ग मान्यता प्राप्ति से वंचित होना ऐसे गैर सरकारी अफसरों  और पत्रकार ज्यूरियों की मनमर्जी का खुला दर्शन है !    
प्रशासक के प्रेसनोट भी जारी नहीं करतीं ;----सूत्रों ने उक्त तीनों ही महिला अधिकारियों के दुस्साहस की जानकारी देते हुए कहा कि गत 25 अप्रैल  को प्रशासक वीपी सिंह बदनौर की अध्यक्ष्ता में एडवाइजरी काउन्सिल की बैठक हुई थी। इसमें कई कमेटियों ने विकास से सम्बंधित मत्वपूर्ण प्रजेंटेशन भी दिए थे। बाद में होम सेक्रेटरी अनुराग अग्रवाल ने युति गेस्ट हॉउस में प्रेस कॉन्फ्रेंस भी किया। कुल मिलाकर उस दिन शहर के लिए पत्थर की लकीर खींचने वाली मत्वपूर्ण बैठक थी। इसके बाद भी डिपार्टमेंट की ओर से संबंधित प्रेसनोट जारी नहीं किये गए। हालांकि विभाग के फोटोग्राफरों ने प्रत्येक प्रशासनिक कार्यक्रमों से सम्बंधित कई फोटो कैप्शन सहित भेजे। पर संबंधित प्रेसनोट जारी बिलकुल भी नहीं।  क्योंकि सरकारी प्रेस फौप्टोग्राफरों ने अपनी ड्यूटी ईमानदारी से निभाई जोकि सब के सामने भी आती रहती है !  
पीआरओ का क्या है दायित्त्व ;---
हरियाणा जैसे राज्यों में जिला संपर्क अधिकारी को प्रतिमाह 15 प्रेसनोट, पीआरओ और एपीआरओ को भी 15-15 प्रेसनोट जारी करना अनिवार्य है। इसके अलावा आईएएस अधिकारियों, डायरेक्टर स्तर के अधिकारियों, मंत्रियों की मीटिंगों में मौजूद रहकर प्रेसनोट जारी करने की भी जिम्मेदारी उनके पास होती है। वहीँ राज्यों के मुख्यालयों में भी कमोबेश यही नियम है। इसपर डायरेक्टर पब्लिक रिलेशन का सुपरविजन रहता है।   
इनपर कड़ी कार्रवाई की पुरजोर मांग ;---
सूत्रों ने प्रशासक बदनौर और अन्य आला अधिकारियों से मांग की है कि पिछले एक साल के अंदर डीपीआर से जारी हुए प्रेसनोट और फोटो की जांच हो। कितनी फोटो जारी हुईं और सम्बंधित फोटो के कितने प्रेसनोट जारी किये गए हैं। यदि प्रेसनोट जारी भी हुए तो किस पीआरओ या किस एपीआरओ ने जारी किये थे। इसमें यदि कोई कोताही बरती गई है तो सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। क्योंकि डीपीआर के इस कार्यशैली से प्रशासक बदनौर और प्रशासन की छवि धूमिल हुई है, हो रही है। समय रहते अभी भी सूत्रों की मांगों पर समुचित ध्यान न दिया गया तो पब्लिक और  लोक सम्पर्क विभाग के प्रति विश्वास और  अनिवार्यता का भाव ही शून्य होकर रह जायेगा ! [साभार; एमके ]
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