चंडीगढ़ ; 7 अक्टूबर ; आरके शर्मा विक्रमा /मोनिका शर्मा ;----सदसुहागिनों का सब व्रतों का सरताज कहा जाने वाला व्रत करवाचौथ का व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की करक चतुर्थी को मनाया जाएगा ! इतवार को साँझ ढलने के बाद 4-58 बजे तक तो तृतीया तिथि के बाद चतुर्थी का प्राम्भ होगा ! करवाचौथ का चाँद रात्रि 8-30 बजे शुभ दर्श देगा, ये सटीक महूर्त धर्म प्रज्ञ और ज्योतिष ज्ञान के रुचिकर पंडित रामकृष्ण शर्मा ने पंचकूला स्थित सेक्टर 11 के प्राचीन शिवमंदिर [पीपल वाली माता मंदिर ]के प्रांगण में सब सुहागिनों के चंद्र दर्शन संशय का निववरण करते हुए बताया !
पंडित रामकृष्ण शर्मा व्रत की महिमा और सर्वकालीन प्रचलन आदि के बखान के साथ बताते हैं कि ये व्रत सुहागिनें अपने सुहाग [पति]की स्वस्थ दीर्घायु के मनोरथ का संकल्प लेकर रखती हैं ! और निराहार निर्जल रहते हुए शाम ढलने के बाद चन्द्रदर्शन के बाद चंद्र को आर्घ्य देने के बाद पति के हाथ से पहला निवाला मुंह में लेने के बाद व्रत को सम्पूर्ण करती हैं ! पंडित शर्मा जी ने बताया कि ये वह व्रत है जिसको सतयुग में सदस्याहगिन माता पार्वती जी भगवान शिवशंकर जी के लिए और महाभारत के दौर में पांच पांडवों की अर्धांगिनी द्रोपदी ने भगवान श्री कृष्ण के मार्गदर्शन पश्चात सम्पूर्ण किया था ! दम्पति देव देवियों में भी व्रत आयोजन करने के उल्लेख शास्त्रों उपनिषदों और अन्य धर्म ग्रंथों में मिलते हैं ! माता लक्ष्मी नारायण, माता सरस्वती ब्रह्मा जी, भगवान सियाराम जी, श्री कृष्ण रुक्मणि जी और ऋषि गौतम के लिए सती अहल्या जी ने अभी सम्पूर्ण किया था ! करवाचौथ का व्रत भगवान कार्तिकेय व् माता पार्वती जी भगवान शिवशंकर जी और चंचलता के देव चंद्र देवता की धर्म विधान अंतर्गत पूजा अर्चना की जाती है ! सुहागिनें सुहाग की वस्तुएं यथा समार्थ्य अपनी सासु माता को या घरपरिवार की बड़ी बुजुर्ग महिला को देकर अखंड सौभाग्यवती का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं ! व्रती सुहागिनें आपस में सुहागी आदि का आदानप्रदान करती हैं और इक दूजे को अखंड सुहागवती की शुभकामनायें देती हैं ! व्रत की कथा सांझ ढलते ही श्रवण करनी चाहिए और कथावाचक को यथासमार्थ्य दक्षिणा देकर आशीष लेनी चाहिए ! व्रत के बाद मिष्ठान और नमकीन भोजन स्वेच्छा अनुसार ग्रहण करें !
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