आयुर्वेद एवं स्वास्थ्य

चंडीगढ़ ; 20 मार्च ; आरके विक्रमा शर्मा /मोनिका शर्मा/प्रस्तोता  ;-----आहार ;-----
भोजन , जल और वायु - आहार के मुख्य अंग हैं . आहार से ही तेज , उत्साह , स्मृति , ओज ( जीव शक्ति ) तथा शरीर - अग्नि की वृद्धि होती है .
गीता में सात्विक आहार के विषय में कहा है , जो सभी मनुष्यों के लिए समान रूप से लाभप्रद है -
रस्याः स्निग्धाः स्थिरा हृदया आहाराः सात्विकाह प्रियाः .
जो भोजन सभी रसतत्वों वाला हो , सुरस व स्वादिष्ट हो , स्निग्ध अर्थात चिकनाई युक्त हो , शरीर को स्थैर्य देने की शक्ति हो , ह्रदय और दिमाग को ताकत देने वाला हो , सुविधापूर्वक पचने वाला हो , और प्रिय हो - ऐसा आहार सात्विक है .
संतुलित पथ्य भोजन ग्रहण करने वाला व्यक्ति ही पूर्ण स्वस्थ रहते हुए अपना जीवन व्यतीत कर सकता है .

भोजन के मुख्य कार्य ;-------

भोजन का मुख्या कार्य रस - रक्त आदि धातुओं को बढ़ाकर शरीर का विकास करना , क्षतिपूर्ति करना , ज़रूरी उष्णता और बल बनाए रखना तथा शरीर की जीवनी शक्ति को स्थिर करना है .
आयुर्वेद का सिद्धांत है - ' सामान्य वृद्धिकारणम ' . समान गुण धर्म वाले पदार्थ से वृद्धि होती है .
1 वे पदार्थ जिनमें रस - आक्तादी धातुओं और स्नायौं की वृद्धि तथा शारीरिक क्षतिपूर्ति करने वाले तत्व हों , जैसे दूध , अंडा , मांस और दाल .
2 . वे पदार्थ जो शरीर को आवश्यक उष्णता प्रदान करते हैं जैसे आटा , चावल , चीनी , आलू आदि .
3 . वे पदार्थ जो शरीर को जीवशक्ति - संपन्न बनाकर शक्ति का कोष भी संचित करते हैं . जैसे घी , माखन ओर तेल आदि स्नेह पदार्थ .
4 वे पदार्थ जो भोजन के पाचन - . प्रचूषण में सहायता करते हैं . जैसे - जल , पेय , खनिज पदार्थ , पाचकांश और विटामिनें

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