कुरुक्षेत्र ; दिसम्बर ; राकेश पण्डित /अल्फ़ा न्यूज़ इंडिया विशेष प्रतिनिधि ;-----चुनाव यानि एक प्रतिनिधि को चुनने का जरिया जिससे हम आकंलन करते है कि देश को तरक्की पर ले जाने के लिए हम सबने एक कड़ी जोड़ी है जो जनता ओर राजनेता के बीच में कार्य करती है जो हम सब की रोजमर्रा की समस्याओं का निवारण कर सकेगी लेकिन क्या सच में ऐसा होता है जब तक राजनीतिक पार्टोयों में चंदा लेकर उम्मीदवार मैदान में उतारे जाऐगे तब तक शायद ही देश का विकास हो सके क्योंकि एक चुनाव लडऩे के लिए कोई जरूरी नही कि वो पढ़ा लिखा हो कोई जरूरी नही कि उसको राजनीति का ज्ञान हो लेकिन उसके पास चंदा कितना है ये सब जरूरी है !
आज भारत देश में राजनीतिक पार्टोयों की भरमार है ओर धड़कले से चंदा दे रहे है। यदि राजनीतिक दलों पर नजर डाले तो ये तथ्य चौकाने वाले है भारत में कुल 6 राष्ट्रीय और 48 बड़े क्षेत्रीय राजनीतिक दल रजिस्टर्ड है मौजुदा समय में देश में 1786 गैर मान्यता प्राप्त राजिस्टर्ड पार्टोयां है 2004 से 2015 के बीच राजनीतिक पार्टोयों की 63 फीसदी कमाई नकद बेनामी चंदे के रूप में प्राप्त हुई है। 2014-15 मेें भारतीय जनता पार्टो व कागेंस समेत 6 राष्ट्रीय दलों की कुल कमाई 445 करोड़ अज्ञात स्त्रोत से मिली। 2014-15में सीपीएम की कुल कमाई 123 करोड़ रूपये, 60 करोड़ रूपये अज्ञात स्त्रोत से मिली।
2014-15 में भारतीय जनता पार्टो की कुल कमाई 970 करोड़ 43 लाख रूपये, 506 करोड़ अज्ञात स्त्रोत से,2014-15 में काग्रेंस की कुल कमाई 593 करोड़ रूपये, 445 करोड़ अज्ञात स्त्रोत से, सीपीआई की कुल कमाई 1.84 करोड़ रूपये, 30 हजार अज्ञात स्त्रोत से, बहुजन समाज पार्टो 2014-15 कुल कमाई 111 करोड़ , 92 करोड़ अज्ञात स्त्रोत से, इन पार्टोयों को चंदा है जो कि देश से ही नही बल्कि विदशों से भी पार्टोयों को चंदा मिलता है। क्या चुनाव लडऩे के लिए धनवान होना जरूरी है। क्या जरूरी नही है चुनाव आयोग के पास हर राजनीतिक दलों की रैलीयों,कार्यलयों के खर्च,उनकी दिनचर्या का खर्च,ओर अन्य खर्च जो चुनाव के दौरान व चुनाव के बाद ये राजनीतिक दल करते है। हमारे देश के सोचनीय विषय है कि आज भी राजीनीतिक पार्टोयां आरटीआई के बाहर है ओर दो दशक से टैक्स में कोई सुधार नही हुआ,आई टी एक्ट 1961 के तहत छुट हंै जिससे साफ जाहिर होता है कि हम किस देश को आगे बढ़ाने मे लगे हुए है ओर किस तरह से अच्छे व ईमानदार व शिक्षित लोगो को राजनीति में आने का मौका नही मिलता। क्या देश के भविष्य को भ्रष्ट व अनपड़ लोगो के हाथेां में सौपं कर अपने भविष्य को सुधार पायेगें। अब देखना यह होगा कि हम कब तक देश का पैसा बर्बाद करते रहेगे। क्या चुनावों में पारदर्शता आयेगी। क्या चुनाव भी बगैर रैलीयों,ओर कम खर्च पर हो सकेगे.....
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