शरद पूर्णिमा रात्री बहु उपयोगी चिकित्सा दायिनी : माँ भिक्षु जी गीताधाम

शरद पूर्णिमा रात्री बहु उपयोगी चिकित्सा दायिनी : माँ भिक्षु जी गीताधाम 

चंडीगढ़ ; 15 अक्टूबर ; आरके शर्मा विक्रमा /मोनिका शर्मा /आरके विक्रमा शर्मा ;---शरद पूर्णिमा रात्री अनेकों पहलुओं से बहु उपयोगी मानी जाती है ! इस रात्रि के कई मायने ऋषिवरों तपस्वियों मुनियों योगियों ने जगत चराचर को उपलब्ध करवाते हुए इसकी महा उपयोगिता बताई है ! इस दिन चन्द्र किरणे विशेष गुणकारी ओज प्रभाव लिए रहती हैं ! इस रात्री खीर का तो अति प्रभावी असर कहा गया है ! दुध चावल केसर युक्त खीर को मिटटी के कसोरे में भर कर घर की मुंडेर या छत पर रात भर के लिए रखा जाता है ! सवेरे सेवन किया जाता है ! किद्वंती है कि जिन विवाहिताओं के सिर्फ कन्या ही उतपन्न होती हैं या जिनके कोई औलाद नहीं होती अगर दम्पति इस खीर को खुद बनाएं और अगले दिन खाएं तो सन्तान सुख मिलता है ! ये खीर चन्द्रमा किरणों से शक्तियुक्त होकर स्वास्थ्य लाभ और तन्दरुस्ती प्रदान करती है ! काया में कांति मन में चंचलता और और नाना प्रकार के सुखगुण देती है ! शीतला  व् पित्तशमन कफ वायु और कई शारीरिक विकारों का त्रास करती है ! 
    धर्म ग्रन्थों के इसके विविध वर्णन मिलते हैं !  कुरुक्षेत्र स्थित गीताधाम की प्रसन्चालिका माता भिक्षु जी [महाराज गीतानन्द जी की परम् स्नेही शिष्या] इस बाबत  कहते  हैं कि स्वर्ग लोक के देवी देव आदि भी शरद पूर्णिमा की रात का चितवन से प्रतीक्षा करते हैं ! ये रात रति की रात्री कही जाती है ! केपी पद्दति के ज्योतिषी बलविंदर सिंह खोखर ने कहा कि इस रात्रि को किया गया सहवास पुत्र रत्न प्रदान करता है ! इस रात्री को अनेकों आयुर्वेदिक चिकित्सक नाना प्रकार की औषधियां  बना कर शरद पूर्णिमा के चन्द्रमा की नजर करते हैं ! ये औषधियां किसी रामबाण से कम नहीं आंकी जाती हैं ! देह पर अगर किसी तरह की खारिश आदि हो व्याधियां हों और चक्कते हों दाद खाज खुजली रहती हो तो चन्द्र किरणों को अपनी नग्न देह पर बरसने देना चाहिए ! जितने पल किरणें देह  के जिस जिस भाग पर पड़ेंगी वहां किसी प्रकार की वायुविकार व् चर्म-गुप्त रोग, मूत्र रोग  नहीं रहेगी ! शरद पूर्णिमा की रात्रि को ही चन्द्रमा अपनी सोलह कलाओं के ओज से घिरा रहता है ! तभी तो इस रात्रि का रोमांस से सीधा सम्बन्ध रहता है ! शुक्र स्वामी की राशि वाले जातक पर रति खूब प्रसन्न रहती है ! शरद पूर्णिमा अर्थात रस पूर्णिमा में बनने वाली औषधि विशेष वीर्य बल देती देह पुष्ट करती,बुद्धि पोषित करती और सबल स्वस्थ चिरायु करती है ! दशानन संहार दिवस से लेकर शरद पूर्णिमा तक चन्द्रमा अपने पुर यौवन पर चंचलता लिए चमकता है तभी तो इसकी इक इक किरण जीवनदायी आरोग्य प्रदायी कहलाती है ! जिन जच्चाओं [माताओं ]के वक्ष में अपने बच्चे के लिए दूध एकत्रित नहीं होता या बहता नहीं हो वह युवती जच्चा अपने स्तनों पर चन्द्रमा की दूसरे से चौथे पहर तक की किरणों को अपने वक्ष स्थलों पर झरने दें ! भविष्य में कभी माँ के दूध में कमी नहीं रहेगी और सन्तान स्वस्थ हष्ट पुष्ट रहेगी ! इस दिन निराकार और साकार भक्ति मन मस्तिष्क  से करने पर अनूठे  सुखों समृद्धियों की प्राप्ति होती हैं ! 

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