अकाल मृत्यु से भयमुक्त करती धनतेरस की दीपदान पूजार्चना,मनाएं धनदेवी लक्ष्मी देवी जी को

चंडीगढ़ ; 27 अक्टूबर ; आरके विक्रमा शर्मा /मोनिका शर्मा /करणशर्मा ;-----धनतेरस अर्थात धन में तेरह  गुणा वृद्धि व् अकाल मृत्यु से अभयदान देती दीपदान पूजा का भारतवर्ष में  पौराणिक और ऐतिहासिक खूब महत्व है ! देवकाल से ही इसका विधान, व्याख्यान व्  महता वेदों उपनिषदों में बखूबी मिलती है ! पौराणिक कथा के मुख्य अंश मुताबिक जब यमलोक से धर्मराज के अनुचर यमराज  के यम धरती पर एक नवविवाहित दम्पति की हंसती खेलती जीवनलीला का विनाश करने लगे तो उनका दिल ये देखकर डोल किया कि चन्द दिवस पूर्व ही युवक युवती ने प्रणय- बन्धन में बंध कर नए जीवन की शुरुआत की ही थी कि यमराज जी की आज्ञा से युवक के प्राण हरने पड़ रहे थे ! यमों का हृदय द्रवित हो उठा ! पर कर्तव्य का निर्वहन करते हुए युवक की  देह छोड़ उसके प्राण लेकर यमपुरी को चले ! रास्ते भर में युवा दम्पति के प्राण हरने की पीड़ा से दोनों मुक्त नहीं हो पा रहे थे ! यमपुरी में यमराज से यक्ष प्रश्नोत्तर  पूछा कि महाराज अकाल मृत्यु से बचने का उपाय मातलोक के लिए कहो ! यमुना के भाई यमराज बोले आज के दिवस जो दोनों वक़्त दीपदान और पूजार्चना करेगा उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं सताएगा ! धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा अर्चना सहित बड़ी सवेरे व् सांझ दो वक़्त मिलन वेला पर दीपदान की परम्परा आदि अनादि काल से आज भी अबाध रूप से प्रचलित है ! जिस गृह में ये पूजा विधि सम्मत की जाती वहां कुबेर का वास  रहता और यम आने से घबराते हैं ! इस दिन जरूरतमंदों को धन का दान और वस्त्र दान का विशेष महत्व कहते हुए धर्म प्रज्ञ पण्डित रामकृष्ण शर्मा और धर्म गुणी माता व् गीता धाम कुरुक्षेत्र की मौजूद संचालिका बड़ी माता भिक्षु जी महाराज ने बताया कि धन तेरस की पूजा गृह  में धन का अभाव दूर करती और गृह में अगर कोई रोगी हो तो उसके रोगविकार दूर करती है ! आज के दिवस इसी पूर्वाग्रह के चलते ही सवर्ण और चंडी के आभूषण और घर में उपयोग में लाये जाने का बर्तन आदि खरीद का विधान सदियों से चला आ रहा है !   अनेकों लोगों ने आज स्वर्ण आभूषण खरीदकर भले ही दुकानों में छोड़े लेकिन धनतेरस के शुभ मंगलकारी मुहूर्त  के वक़्त अपने गृह ले जायेंगे ! माता श्री भिक्षु जी के अनुसार  धनतेरस जीवन की बुनियादी आवश्यकता का अटूट सोपान है सो यूँ तो ये विश्व भर में अहम है पर भारत पर  खास करके उत्तरी भारत में कार्तिक मास में स्नान पूजा अर्चना के साथ कृष्ण पक्ष में त्रयोदशी तिथि के दिवस धनतेरस की पूजा विधान का पर्व आस्थावत मनाया जाता है ! अंक ज्योतिष व् लाल किताब और वास्तु शास्त्र के प्रज्ञ सरदार हरिसिंह सैनी ने धन्तेरस के सम्बन्ध में गहरी जानकारी उपलब्ध करवाते हुए बताया कि धन की अधिष्ठात्री देवी विष्णुप्रिया लक्ष्मी जी पूजा का विशेष विधान है ! और धन पिपासु तो धनदेव कुबेर की रात्रि पूजन और सिद्धि साधने में समय व् शक्ति सहित समर्थया निर्वहन करते हैं !
भगवान धन्वन्तरि जी धनतेरस के शुभ दिवस को ही सागर से अमृत कलश लेकर पधारे थे ! धर्मप्रज्ञों के  मतानुसार अधिकतर लोग धन लोलूपतावश कुबेर के सिद्धिमन्तरों के अनुष्ठानों में रत हो जाते हैं पर धनतेरस की रात्री को धन की देवी माँ लक्ष्मी की पूजा विधि सम्मत हवन करने से धन का अकाल ही नहीं पड़ता है !  कुबेर की पूजा में तिलों का विशेष दान का महत्व है ! ये दान दक्षिण दिशा की ओर मुख करके करें तो अच्छा लाभ देता है ! धन्वन्तरि महराज जी अमृत का कलश लाये थे सो तभी से कलश [बर्तन] खरीदने का विधान है ! उक्त कलश में जितना धन समायेगा उससे तेरस यानि तेरह गुणा अधिक प्राप्त  होगा ! तभी सन्त पुरुष तेरा तेरा ही जपते हुए धन अपने उपयोग के बाद तेरा ही तुझ को अपर्ण जान जरूरतमंदों को लूटा देते हैं ! इस दिवस स्वच्छता का विशेष विधान होता है!



  

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