कुरुक्षेत्र /बाबैन : 21 सितम्बर ; राकेश शर्मा ;----
किसान का नाम सुनते हमारे जहन में आता है कि किसान ही है जो धरती का सीना चीर कर उसमें से अनाज पैदा करने का मादा रखता है ओर भरता है देश का पेट,किसान अपनी धरती से उतना ही प्यार करता है जितना की एक मां अपने बच्चे से।
किसान अपने देश का पेट भरने के लिए दिन रात मेहनत करता है फिर भी किसान को क्या मिलता है शायद यह कड़वी सच्चाई ही होगी आज देश का किसान निराश ओर हताश है क्या इसका कारण सरकारें या फिर वो खुद। मेहनत का फल हमेशा मीठा होता है लेकिन किसान के लिए इसके अर्थ दूसरे ही है।
ना जाने हम कब से सुनते आ रहे है भारत कृषि प्रधान देश है लेकिन अपने मन पर हाथ रख कर सोचिए कि वाकई ये सच है या फिर सुनी हुई बातें को सच मान बैठे है यह वहम है हमारे मन का।
भारत देश को आजाद हुए लगभग 68वर्षो से ज्यादा हो गया है लेकिन किसान के हालात ज्यों के त्यों है क्या सरकार भी नही चाहती कि हमारे देश का किसान नयी तकनीकी का प्रयोग करें या फिर उसे इस काबिल नही समझते आखिर ऐसा क्यों हो रहा है हमारे देश के धरती पुत्र के साथ आवाज उठती है ओर फिर ना जाने कहा दब जाती है चुनावों के दौरान उम्मीदवार आते है भोले भोले किसानों के लिए नई नई योजनाएं उन्हें बताकर उनकी वोट हथीयानें का काम कर रहे है ओर एक बार सत्ता पर आसीन होने के बाद किसान के बारे में कोई नही सोचता।
केन्द्र ओर राज्य सरकारों के तामाम बयानों में उसें भरोसा नही दिख रहा क्योंकि ये कभी किसान की मदद के लिए बहुत कारगर कदम नही उठा पाई है। आज भी किसानों की फसल मेें आई हुई आपदा से निपटने के लिए पुरानी व्यवस्था और मानदंड़ ही जारी है। भले ही जनधन में 13 करोड़ से ज्यादा खाते खुले गये हो, आधार नबंर से लिंक होने वाले बैंक पुरी आबादी को कवर करने की ओर अग्रसर हो रहे है। लेकिन किसानों के मदद के लिए वही पुरानी लचर,लंबी परंपरा है। क्या सरकार के पास ऐसी कोई योजनां नही है जिससे किसान खुशहाल हो सके ओर दिन रात मेहनत करके उसे भी चैन की नीद आ सके।
इस लेख के माध्यम से हम सरकार को संदेश देना चाहते है कि सरकार किसी भी पार्टो की हो पर किसानों के अपनी जिम्मेवारी तय करें ताकि देश का किसान कर्ज से मुक्त हो सके,किसान आत्महत्या ना करें,्रसान खुशहाल बन सके।
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