दीवान टोडर मल अकबर द्वार के नवरत्न सिख पंथ के बने सिपहसलार

अकबर के दरवार का रत्न टोडरमल बना था सिख पंथ की अणख  का तरणहार 
चंडीगढ़ ; 24 दिसम्बर ; आरके शर्मा विक्रमा /करण शर्मा /मोनिका शर्मा ;----हिंदुस्तान में मुगल सल्तनत के प्रवर्त्तक बाबर के लख्तेजिगर हुमायूँ के रोशन ऐ चिराग अकबर को बादशाह अकबर महान के नाम से ही जाना जाता है ! हिन्दू धर्म प्रेमी और इंसानियत को जानने वाले अशिक्षित अकबर के दरबार में कुल नौ रत्न [होनहार विशेष पुरुष] थे ! दीवान टोडरमल जाति से ब्राह्मण दुनिया के पहले भूमि जमाबंदी के ज्ञाता थे जिन्हों ने अकबर के शासन काल में भूमि की बेमिसाल जमाबन्दी की मिसाल कायम करते हुए ये प्रथा प्रचलित की थी !
जब पंजाब में सिख पंथ के दसवें गुरु गोविन्द सिंह महाराज के दोनों छोटे साहिबजादों को दीवार में मुगल नवाब ने जिन्दे ही चिनवा दिया पर नौ वर्ष के जोरावर सिंह और सात वर्ष के फतेहसिंह ने धर्म नहीं बदलने की मिसाल वैसे ही कायम की जैसे हिन्दू वीर बालक हकीकतराय ने मुगलों की ईन नहीं मानी थी ! और हँसते हँसते खुद अपनी गर्दन जल्लाद के फरसे के नीचे कर दी थी ! दोनों साहिबजादे जब फिर बचे रहे तो कहा जाता है कि उन मासूम सूरमाओं के गले रेतने से उनको कुर्बान किया गया था ! ये समाचार सुनते ही दादी माता गुजरी ने अपने प्राण त्याग दिए थे ! इन तीनों के संस्कार को लेकर मुगल जुल्मी नवाब ने फरमान सुनाया था कि मुगल जमीन पर संस्कार की इजाजत नहीं दी जाएगी ! तो ब्राह्मण टोडरमल जी ने अपनी पुरखों की कमाई तमाम जायदाद नकदी धन दौलत और गहने आदि बेच डेल और नवाब से मिलकर गुरु परिवार के तीनों जिओ के संस्कार की इजाजत मांगी ! बदले में नवाब ने दिवान टोडरमल से उक्त संस्कार के लिए महज चार मीटर दायरे की भूमि के लिए स्वर्ण अशर्फियाँ मांगी थीं ! महान त्यागी और धर्म कर्म के पुरोधा टोडरमल ने आने वाली पीढ़ियों के हिस्से का धन भी देकर गुरु कुनबे का बड़े सत्कार और आस्था से संस्कार सम्पन्न करवाया ! उस वक्त सोना बहुत    
       

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