प्रशासन की नाक तले व् उदासीनता बनी अवैध कब्जों का सबब,कागजी कार्यवाही में भी कामयाबी में कोसों दूर
जैसलमेर ; 29 मई ; चंद्रभान सोलंकी ;------
नगर परिषद की उदासीनता से सरकारी जमीनों पर हो रहे अतिक्रमण तंत्र की मिलीभगत की पोल खोल रहे हैं ! परिषद की उदासीनता से सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण, आठ बस्तियां अवैध बसना सब कुछ साफ़ कर रहा है ! जिला जैसलमेर में हो रहे हैं अतिक्रमण : शहरके आसपास का एक भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जहां अतिक्रमण नहीं हो। गफूर भट्टा, राणीसर कच्ची बस्ती, बबर मगरा, पुलिस लाइन कच्ची बस्ती, तोताराम की ढाणी, होटल कॉम्पलेक्स के पीछे वाला हिस्सा तथा यूआईटी के अधीन आया शहर के आसपास के इलाके पर भूमाफियाओं की टेढ़ी नजर जग जाहिर है और अवैध गैरकानूनी कब्जे धड़ाधड़ हो रहे हैं। शहर के आसपास नगरपरिषद की जमीन पर हो रहे अतिक्रमण सरकारी तंत्र की आँख से कैसे परे हैं खुदा ही जाने ! हाइकोर्ट के फैसले के बाद नगरपरिषद ने नहीं की कार्रवाई ;----- उक्त अवैध कब्जों की भरमार से कई जगहों पर खूब विवाद हो रहे हैं ! सामाजिक परिवेश अनचाहे जिहाद में सुलगना शुरू हो चूका है ! कड़वा सच तो ये है कि फिलहाल इस पर सुप्रीम कोर्ट का स्थगन आदेश है। लेकिन इससे पहले हाईकोर्ट ने एक पक्ष में फैसला किया था ! और नगरपरिषद की उदासीनता रही कि दो माह के समय में अतिक्रमण नहीं हटाया,अब क्यों नहीं हटाया, ये भी सच किसी से छिपा ही नहीं रहा है । इसका फायदा दूसरे पक्ष को मिल गया और वे सुप्रीम कोर्ट से स्थगन आदेश ले आए। करोड़ों की जमीन पर फिर से हो रहा है कब्जा ;----होटलकॉम्पलेक्स के पीछे वाली जमीन पर करीब ढाई साल पहले नगरपरिषद प्रशासन ने कार्रवाई करते हुए 100 से अधिक कच्चे मकानों को धाराशायी कर करोड़ों की जमीन अतिक्रमण से मुक्त करवाई थी। और इस रकरि कार्यवाही पर कितना सरकारी धनराशि व्यय की गई थी ये आरटीआई से खुलासे की प्रतीक्षा में है ! उसके बाद धीरे धीरे वर्तमान में वहां फिर से पूरी बस्ती बस गई है। इस जमीन की कीमत करोड़ों में है ! और समय रहते नगरपरिषद ने कार्रवाई नहीं की, तो बाद में उन्हें हटाना मुश्किल होगा। और हिसंक माहौल बनेगा सो अलग ! सरकारी धन फिरसे पानी की तरह बर्बाद होगा उसकी भरपाई का असली जिम्मेवार कौन होगा ये भी कोर्ट की नजर लाया जाना चाहिए !
फैक्ट फाइल
{शहरी क्षेत्र में कब्जा करके 7 से 8 कच्ची बस्तियां बन गई है। { यूपी, बिहार एमपी से आने वाले श्रमिक ने बसा ली अपनी बस्तियां।
{नगरपरिषद ने एक भी बड़ी कार्रवाई नहीं की। { कच्ची बस्तियों में कब्जे भी लाखों में बिक रहे हैं।
शहर में नगरपरिषद की उदासीनता के चलते अतिक्रमियों के हौसले बुलंद है और परिषद की करोड़ों की जमीन पर भूमाफियाओं का कब्जा है। शहर का एक भी कोना नहीं है जहां कब्जे नहीं हुए। लेकिन नगरपरिषद है कि कार्रवाई नहीं कर रही है।
गौरतलब है कि कुछ साल पहले शहर में अतिक्रमण की बाढ़ आई थी। उस समय नगरपरिषद प्रशासन ने मिलकर भूमाफियाओं के कब्जे से करोड़ों की जमीन खाली करवाई थी। लेकिन उसके बाद प्रशासन की उदासीनता से उन्हीं इलाकों में फिर से कब्जे हो गए।
कोई कार्रवाई नहीं, केवल खानापूर्ती ;----नगरपरिषद ने अपने कार्यकाल में दो साल से ज्यादा समय में अतिक्रमण के खिलाफ कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की है। केवल खानापूर्ति के नाम पर छोटे छोटे अतिक्रमण हटाए हैं। उसमें भी गरीबों पर गाज गिरी और प्रभावशालियों को छोड़ दिया गया है। इस पुरे लूटखसूट प्रकरण में अधिकारी और तंत्र सहित कानून के रक्षक सब हम में नंगे ही हैं ! अगर ऐसा नहीं है तो ये जो परिस्तिथि सब के सामने अव्यवस्था का अजगर बनी हुई इसकी नौबत हो नहीं आती !
जैसलमेर ; 29 मई ; चंद्रभान सोलंकी ;------
नगर परिषद की उदासीनता से सरकारी जमीनों पर हो रहे अतिक्रमण तंत्र की मिलीभगत की पोल खोल रहे हैं ! परिषद की उदासीनता से सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण, आठ बस्तियां अवैध बसना सब कुछ साफ़ कर रहा है ! जिला जैसलमेर में हो रहे हैं अतिक्रमण : शहरके आसपास का एक भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जहां अतिक्रमण नहीं हो। गफूर भट्टा, राणीसर कच्ची बस्ती, बबर मगरा, पुलिस लाइन कच्ची बस्ती, तोताराम की ढाणी, होटल कॉम्पलेक्स के पीछे वाला हिस्सा तथा यूआईटी के अधीन आया शहर के आसपास के इलाके पर भूमाफियाओं की टेढ़ी नजर जग जाहिर है और अवैध गैरकानूनी कब्जे धड़ाधड़ हो रहे हैं। शहर के आसपास नगरपरिषद की जमीन पर हो रहे अतिक्रमण सरकारी तंत्र की आँख से कैसे परे हैं खुदा ही जाने ! हाइकोर्ट के फैसले के बाद नगरपरिषद ने नहीं की कार्रवाई ;----- उक्त अवैध कब्जों की भरमार से कई जगहों पर खूब विवाद हो रहे हैं ! सामाजिक परिवेश अनचाहे जिहाद में सुलगना शुरू हो चूका है ! कड़वा सच तो ये है कि फिलहाल इस पर सुप्रीम कोर्ट का स्थगन आदेश है। लेकिन इससे पहले हाईकोर्ट ने एक पक्ष में फैसला किया था ! और नगरपरिषद की उदासीनता रही कि दो माह के समय में अतिक्रमण नहीं हटाया,अब क्यों नहीं हटाया, ये भी सच किसी से छिपा ही नहीं रहा है । इसका फायदा दूसरे पक्ष को मिल गया और वे सुप्रीम कोर्ट से स्थगन आदेश ले आए। करोड़ों की जमीन पर फिर से हो रहा है कब्जा ;----होटलकॉम्पलेक्स के पीछे वाली जमीन पर करीब ढाई साल पहले नगरपरिषद प्रशासन ने कार्रवाई करते हुए 100 से अधिक कच्चे मकानों को धाराशायी कर करोड़ों की जमीन अतिक्रमण से मुक्त करवाई थी। और इस रकरि कार्यवाही पर कितना सरकारी धनराशि व्यय की गई थी ये आरटीआई से खुलासे की प्रतीक्षा में है ! उसके बाद धीरे धीरे वर्तमान में वहां फिर से पूरी बस्ती बस गई है। इस जमीन की कीमत करोड़ों में है ! और समय रहते नगरपरिषद ने कार्रवाई नहीं की, तो बाद में उन्हें हटाना मुश्किल होगा। और हिसंक माहौल बनेगा सो अलग ! सरकारी धन फिरसे पानी की तरह बर्बाद होगा उसकी भरपाई का असली जिम्मेवार कौन होगा ये भी कोर्ट की नजर लाया जाना चाहिए !
फैक्ट फाइल
{शहरी क्षेत्र में कब्जा करके 7 से 8 कच्ची बस्तियां बन गई है। { यूपी, बिहार एमपी से आने वाले श्रमिक ने बसा ली अपनी बस्तियां।
{नगरपरिषद ने एक भी बड़ी कार्रवाई नहीं की। { कच्ची बस्तियों में कब्जे भी लाखों में बिक रहे हैं।
शहर में नगरपरिषद की उदासीनता के चलते अतिक्रमियों के हौसले बुलंद है और परिषद की करोड़ों की जमीन पर भूमाफियाओं का कब्जा है। शहर का एक भी कोना नहीं है जहां कब्जे नहीं हुए। लेकिन नगरपरिषद है कि कार्रवाई नहीं कर रही है।
गौरतलब है कि कुछ साल पहले शहर में अतिक्रमण की बाढ़ आई थी। उस समय नगरपरिषद प्रशासन ने मिलकर भूमाफियाओं के कब्जे से करोड़ों की जमीन खाली करवाई थी। लेकिन उसके बाद प्रशासन की उदासीनता से उन्हीं इलाकों में फिर से कब्जे हो गए।
कोई कार्रवाई नहीं, केवल खानापूर्ती ;----नगरपरिषद ने अपने कार्यकाल में दो साल से ज्यादा समय में अतिक्रमण के खिलाफ कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की है। केवल खानापूर्ति के नाम पर छोटे छोटे अतिक्रमण हटाए हैं। उसमें भी गरीबों पर गाज गिरी और प्रभावशालियों को छोड़ दिया गया है। इस पुरे लूटखसूट प्रकरण में अधिकारी और तंत्र सहित कानून के रक्षक सब हम में नंगे ही हैं ! अगर ऐसा नहीं है तो ये जो परिस्तिथि सब के सामने अव्यवस्था का अजगर बनी हुई इसकी नौबत हो नहीं आती !
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